

पेट्रोल या डीज़ल: कौन सी कार बेहतर रीसेल वैल्यू देती है?
- 1BS6 और CAFE नॉर्म्स के कारण कार निर्माता डीज़ल कारें कम बना रहे हैं
- 2कई शहरों में डीज़ल कारों की वैधता सिर्फ 10 साल होने से उनकी बिक्री घट सकती है
- 3पेट्रोल कारें आज भी इस्तेमाल, रखरखाव और रीसेल के लिहाज़ से व्यावहारिक साबित होती हैं
कुछ साल पहले तक पेट्रोल और डीज़ल के बीच चुनाव करना काफी आसान था – ईंधन की कीमत देखिए और फैसला कीजिए। डीज़ल कारों को ज़्यादा किफायती, मज़बूत और लंबी दूरी के लिए बेहतर माना जाता था। लेकिन 2025 में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। बदलते सरकारी नियम, बढ़ती मेंटेनेंस कॉस्ट और पर्यावरणीय प्रतिबंधों ने डीज़ल बनाम पेट्रोल के रीसेल मार्केट को पूरी तरह हिला कर रख दिया है। तो क्या अब भी डीज़ल वैल्यू में पेट्रोल से बेहतर है? आइए इस सवाल की गहराई में चलते हैं।
सख्त होते प्रदूषण नियंत्रण नियम
BS6 एमिशन नॉर्म्स अप्रैल 2020 से लागू हुए, जिसके बाद सबसे ज़्यादा असर डीज़ल इंजनों पर पड़ा। BS6 में डीज़ल गाड़ियों में डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF), सिलेक्टिव कैटलिटिक रिडक्शन (SCR), और एग्जॉस्ट गैस रिसर्क्युलेशन (EGR) जैसी जटिल टेक्नोलॉजी अनिवार्य हो गईं। वहीं पेट्रोल इंजन को सिर्फ मामूली बदलावों से BS6 के अनुरूप बनाया गया।
BS6 फेज़ 2 और रियल ड्राइविंग एमिशन (RDE) नॉर्म्स ने प्रेशर और बढ़ा दिया। और अब जो BS7 एमिशन नॉर्म्स आने वाले हैं, वे यूरोप के Euro 7 मानकों की तरह होंगे – जिनके चलते कई कार निर्माता डीज़ल गाड़ियों को बंद करने पर मजबूर हो सकते हैं। आज भले ही डीज़ल कारें उपलब्ध हों, लेकिन भविष्य की राह उनके लिए काफी संकरी होती जा रही है।
ओनरशिप कॉस्ट की हकीकत
2025 में डीज़ल से चलने वाली कारें प्रति लीटर ज़्यादा माइलेज दे सकती हैं, लेकिन वो फायदा अब उतना सीधा नहीं रहा। पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें लगभग बराबर हैं। साथ ही डीज़ल गाड़ियों में मौजूद एडवांस्ड एमिशन टेक्नोलॉजी के चलते सर्विस कॉस्ट भी ज़्यादा हो जाती है – ख़ासकर 5 साल के बाद।
DPF क्लॉग होना, टर्बोचार्जर फेल होना, और इंजेक्टर खराबी जैसी समस्याएं आम हैं। दूसरी ओर, पेट्रोल इंजन सिंपल होते हैं, शांत चलते हैं और मेंटेन करने में भी सस्ते पड़ते हैं – यही कारण है कि सेकंड हैंड मार्केट में पेट्रोल गाड़ियों की डिमांड लगातार बढ़ रही है।
आज के खरीदार की प्राथमिकताएं
अब कार खरीदार सिर्फ "कितना देती है?" पर ध्यान नहीं देता। वह चाहता है शांति, कम परेशानी और भरोसेमंद टेक्नोलॉजी। इसलिए ऑटोमैटिक गाड़ियों की डिमांड बढ़ रही है, और डीज़ल की जगह CNG व हाइब्रिड टेक्नोलॉजी ले रही है।
दिल्ली-NCR में 10 साल पुरानी डीज़ल गाड़ियों पर पूरी तरह बैन है। बाकी राज्यों में भी यही ट्रेंड जल्द अपनाया जा सकता है। इस अनिश्चितता के चलते डीज़ल गाड़ियों की रीसेल वैल्यू में गिरावट आई है। पेट्रोल गाड़ियों के साथ ऐसा कोई बैन नहीं है, इसीलिए शहरों और छोटे कस्बों में उन्हें ज़्यादा फ्यूचर-प्रूफ माना जा रहा है।
रीसेल वैल्यू को कैसे बनाए रखें?
चाहे आपकी कार पेट्रोल से चलती हो या डीज़ल से, आप उसकी रीसेल वैल्यू को बढ़ा सकते हैं:
अगर कार डीज़ल है:
- 10 साल पूरे होने से पहले बेच दें, ख़ासकर दिल्ली-NCR जैसे क्षेत्रों में।
- सर्विस रिकॉर्ड पूरा रखें और DPF की सफाई पर ध्यान दें।
अगर कार पेट्रोल है:
- इंजन की परफॉर्मेंस स्मूद रखें।
- हल्के डेंट या खरोंच ठीक करवा लें।
- सर्विस बिल्स के साथ संभावित खरीदारों को दिखाएं कि आपने कार की देखभाल अच्छे से की है।
साथ ही, आफ्टरमार्केट मॉडिफिकेशन से बचें – खरीदार स्टॉक कार को ज़्यादा भरोसेमंद मानते हैं।
निष्कर्ष: 2025 में किसका है रीसेल ताज?
2025 में, पेट्रोल कारें ज़्यादातर सेगमेंट्स में डीज़ल से आगे निकल चुकी हैं। इन पर कम प्रतिबंध हैं, कम कॉम्प्लिकेशन होते हैं, और खरीदारों में दिलचस्पी भी ज़्यादा है। डीज़ल कारें अभी भी हाई माईलेज उपयोगकर्ताओं और ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं, लेकिन इनकी प्रासंगिकता घटती जा रही है। जब तक डीज़ल टेक्नोलॉजी पर्यावरणीय नियमों के अनुरूप तेज़ी से विकसित नहीं होती, तब तक पेट्रोल का पलड़ा भारी ही रहेगा। अगर आप भविष्य की रीसेल वैल्यू को ध्यान में रखते हुए गाड़ी खरीद रहे हैं, तो पेट्रोल ही बेहतर, साफ-सुथरा और टिकाऊ विकल्प है।
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