

BS6 डीज़ल कारों में DEF क्यों ज़रूरी है? जानिए पूरी वजह और फायदे
- 1प्रदूषण को कम करने के लिए डीजल एग्जॉस्ट फ्लूइड एक बड़ा कदम है।
- 2DEF और SCR तकनीक मिलकर NOx जैसे हानिकारक उत्सर्जन को घटाते हैं।
- 31 अप्रैल 2020 के बाद बने सभी बड़े डीजल कमर्शियल वाहनों में DEF अनिवार्य है
- DEF (Diesel Exhaust Fluid) क्या है?
- DEF और Selective Catalytic Reduction (SCR) तकनीक
- डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) के फायदे
- भारत में DEF: मौजूदा स्थिति
- भारत में सरकारी नियम और DEF
- कारों में DEF कैसे काम करता है?
- डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) क्या है?
- DEF की खपत दरें
- कार मालिकों के लिए व्यावहारिक बातें
- अपनी कार में DEF कैसे भरें?
- भारत में DEF कहाँ से खरीदें?
- DEF को कैसे स्टोर और हैंडल करें?
- DEF से जुड़े आम मिथक
- अगर DEF खत्म हो जाए तो क्या होगा?
- क्या DEF ठंडे मौसम में जम सकता है?
- DEF उत्पादन और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ
- निष्कर्ष
भारत में डीज़ल से चलने वाले वाहन लंबे समय से लोकप्रिय रहे हैं। इसकी वजह भी साफ है—पेट्रोल इंजन वाली गाड़ियों की तुलना में डीज़ल कारें महंगी ज़रूर होती हैं, लेकिन इनमें ज्यादा टॉर्क मिलता है और ये अधिक फ्यूल-एफिशिएंट मानी जाती हैं। यही कारण है कि भारी सामान को लंबी दूरी तक ढोने वालों के लिए डीज़ल हमेशा एक बेहतरीन विकल्प रहा है। लेकिन इसके साथ ही डीज़ल को "डर्टी फ्यूल" यानी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन की पहचान भी मिली, क्योंकि डीज़ल इंजन से निकलने वाला धुआं पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।
इन्हीं उत्सर्जनों (emissions) को कम करने के लिए वाहन निर्माता कई तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। BS6 नॉर्म्स के बाद सभी डीज़ल गाड़ियों में डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) जरूरी कर दिया गया है। लेकिन बड़ी और भारी गाड़ियों में सिर्फ DPF काफी नहीं होता, इन्हें साफ करने के लिए एक अतिरिक्त तरल पदार्थ चाहिए—यही है डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF)।
इस बिंदु पर अक्सर सवाल उठते हैं:
- DEF है क्या और यह काम कैसे करता है?
- अगर DEF का इस्तेमाल न किया जाए तो क्या होगा?
- क्या भारत में DEF का इस्तेमाल कानूनी तौर पर ज़रूरी है?
- क्या DEF खरीदना महंगा है?
आइए विस्तार से जानते हैं।
DEF (Diesel Exhaust Fluid) क्या है?

सरल शब्दों में डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) एक पारदर्शी तरल है, जिसे डीज़ल इंजन वाले वाहनों को कम प्रदूषणकारी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि डीज़ल ईंधन पेट्रोल की तुलना में ज्यादा प्रदूषण पैदा करता है, इसलिए यह कदम पर्यावरण और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए जरूरी है।
डीज़ल वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन से इंसानों के फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है और ओज़ोन परत को भी हानि होती है। खासतौर पर देशभर में चलने वाले लॉन्ग-हॉल डीज़ल ट्रकों के लिए यह एक बड़ी चिंता है।
DEF की बुनियादी संरचना
डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड दो चीजों से मिलकर बना होता है:
- डी-आयोनाइज़्ड वाटर
- यूरिया (Urea)
यूरिया, जिसे कार्बामाइड भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक पदार्थ है जो स्तनधारी जीवों के मूत्र में पाया जाता है। यह नॉन-टॉक्सिक और pH न्यूट्रल होता है। इंजन निर्माता यूरिया का उपयोग इसलिए करते हैं क्योंकि यह नाइट्रोजन यौगिकों से जुड़ने की क्षमता रखता है। यही वजह है कि डीज़ल धुएं से निकलने वाले नाइट्रोजन यौगिकों को पकड़ने के लिए यह सबसे उपयुक्त है।
DEF कैसे काम करता है?
- DEF को वाहन के एग्जॉस्ट सिस्टम में गर्म गैसों की धारा में इंजेक्ट किया जाता है।
- वहां पहुंचते ही पानी वाष्पीकृत होकर यूरिया छोड़ देता है।
- गर्म यूरिया टूटकर आइसोस्यानिक एसिड और अमोनिया में बदलता है।
- इसके बाद अमोनिया NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड्स) से ऑक्सीजन अलग करता है।
- यह ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड से मिलकर पानी (H₂O) बनाती है।
अंत में जो उत्सर्जन बाहर निकलता है, वह सिर्फ पानी और नाइट्रोजन होता है—जो पूरी तरह सुरक्षित है।
DEF और Selective Catalytic Reduction (SCR) तकनीक
डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) के सही काम करने के लिए Selective Catalytic Reduction (SCR) तकनीक बेहद अहम है। यह एक फ्यूल और कॉस्ट-एफिशिएंट टेक्नोलॉजी है, जो डीज़ल इंजन के उत्सर्जन को नियंत्रित करती है। SCR तकनीक डीज़ल उत्सर्जन को लगभग शून्य तक लाने में मदद करती है और साथ ही 3-5% तक फ्यूल बचत भी देती है।
SCR में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) को ऑक्सीडाइजिंग वातावरण में कम किया जाता है। इसे "Selective" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह NOx को कम करने के लिए अमोनिया का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया में DEF की भूमिका अहम होती है—इसमें मौजूद यूरिया जल्दी हाइड्रोलाइज होकर एग्जॉस्ट स्ट्रीम में अमोनिया छोड़ता है, जो NOx को बदलकर पानी, नाइट्रोजन और थोड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड बना देता है।
डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) के फायदे

DEF के इस्तेमाल से कई लाभ मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- डीज़ल इंजन से निकलने वाले NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड्स) को घटाता है, जो उच्च तापमान पर ईंधन जलने से बनता है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गैस है।
- फ्यूल एफिशिएंसी को 5% तक बढ़ाता है।
- NOx के हानिकारक प्रभावों से इंजन के पुर्जों को बचाता है, जिससे इंजन की उम्र बढ़ती है।
- मेंटेनेंस की जरूरत और वाहन के खराब होने की संभावना को कम करता है।
- सबसे अहम, पार्टिकुलेट उत्सर्जन को घटाकर हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।
भारत में DEF: मौजूदा स्थिति

भारत में डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड का इस्तेमाल BS6 नॉर्म्स लागू होने के बाद से जरूरी हो गया है। 1 अप्रैल 2020 से BS6 मानक लागू किए गए, जिन्होंने पुराने BS4 नॉर्म्स की जगह ली। BS6 का मुख्य उद्देश्य वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को घटाकर टेलपाइप उत्सर्जन को 1.0g/km कार्बन मोनोऑक्साइड तक सीमित करना है।
BS6 ईंधन में सल्फर की मात्रा कम होती है और इसमें ज्यादा एडिटिव्स का उपयोग किया जाता है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि सभी BS6-कम्प्लायंट इंजन SCR तकनीक और DEF पर निर्भर करते हैं, जो उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली का हिस्सा हैं।
भारत में सरकारी नियम और DEF
भारत सरकार ने 1 अप्रैल 2020 से बने सभी हेवी-ड्यूटी कमर्शियल वाहनों में डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) का उपयोग अनिवार्य कर दिया है। प्राइवेट कारों के लिए नियम थोड़े अलग हैं। केवल वे वाहन जिनका इंजन 2.0-लीटर से बड़ा है, उनमें SCR और DEF सिस्टम लगाया गया है।
यहां एक अहम बात समझने योग्य है: अगर आपके पास 2.0-लीटर से छोटे इंजन वाली BS6 डीज़ल कार है जिसमें SCR तकनीक लगी है, और आप गलत फ्यूल भरवाते हैं, तो आपकी गाड़ी ठीक से परफॉर्म नहीं करेगी। इसलिए हमेशा भरोसेमंद पेट्रोल पंप से ही फ्यूल भरवाना चाहिए।
कारों में DEF कैसे काम करता है?

DEF और SCR का मुख्य उद्देश्य वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन को कम करना है। इसकी प्रक्रिया इस तरह से होती है:
- सबसे पहले इंजन से निकलने वाली एग्जॉस्ट गैस एक पार्टिकुलेट फिल्टर से होकर गुजरती है। यह फिल्टर डीज़ल जलने से बनने वाली राख (ash) और कालिख (soot) को पकड़ लेता है।
- इसके बाद यह गैस एक नोज़ल से गुजरती है, जो एग्जॉस्ट स्ट्रीम में डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) छिड़कता है।
- गर्म एग्जॉस्ट गैस और DEF कैटालिटिक कन्वर्टर में प्रवेश करते हैं। यहां DEF में मौजूद यूरिया एग्जॉस्ट गैस के साथ मिलकर नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) को नाइट्रोजन और पानी में बदल देती है।
- यह दोनों तत्व (पानी और नाइट्रोजन) इंसानों और पर्यावरण के लिए पूरी तरह सुरक्षित हैं।
अधिकांश आधुनिक डीज़ल इंजन SCR + DPF + EGR (Exhaust Gas Recirculation) का संयोजन इस्तेमाल करते हैं, ताकि प्रदूषण को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सके।
डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) क्या है?

डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) एग्जॉस्ट आफ्टर-ट्रीटमेंट डिवाइस है, जो कालिख (soot) और राख (ash) जैसे पार्टिकुलेट मैटर को पकड़कर रोकता है।
समय-समय पर इस फिल्टर को रीजनरेट (regenerate) करना पड़ता है। यह प्रक्रिया फिल्टर में जमा कालिख को जला देती है, ताकि हानिकारक उत्सर्जन (जैसे काले धुएं का गुबार, जो अक्सर डीज़ल कारों से हार्ड एक्सलरेशन पर निकलता है) रोका जा सके।
DEF की खपत दरें
भारत में डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड (DEF) को AdBlue के नाम से बेचा जाता है। इसकी खपत पूरी तरह वाहन के आकार और उसकी फ्यूल एफिशिएंसी पर निर्भर करती है। आमतौर पर AdBlue टैंक की क्षमता 5 से 20 लीटर तक होती है (कमर्शियल वाहनों में इससे भी अधिक)। सभी BS6 डीज़ल वाहनों में इसकी क्षमता का उल्लेख फ्यूल टैंक लिड पर या ओनर मैनुअल में दिया होता है।
AdBlue के लेवल की जानकारी कार के इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर पर दी जाती है, जहां एक अलग इंडिकेटर होता है। यह दिखाता है कि कब टॉप-अप की ज़रूरत है। अधिकृत वर्कशॉप्स सर्विस के दौरान AdBlue का लेवल भर देते हैं, लेकिन फिर भी वाहन मालिकों को समय-समय पर इस पर नज़र रखना चाहिए।
कार मालिकों के लिए व्यावहारिक बातें

डीज़ल को अक्सर "डर्टी फ्यूल" कहा जाता है, लेकिन DEF सिर्फ नाम साफ़ करने का प्रयास नहीं है—यह वाहनों को सच में ज्यादा पर्यावरण-फ्रेंडली बनाता है। हालांकि, इसमें वाहन मालिकों को थोड़ी अतिरिक्त जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। समय पर DEF टॉप-अप याद रखना ज़रूरी है, लेकिन SCR और DEF की वजह से डीज़ल गाड़ियाँ कहीं अधिक साफ और सुरक्षित चलती हैं।
अपनी कार में DEF कैसे भरें?
हर वाहन में DEF (AdBlue) का फिलर अलग-अलग जगह होता है।
- उदाहरण के लिए, भारत में बेचे जाने वाले Land Rover वाहनों में AdBlue का फिलर बोनट के नीचे दाहिनी ओर होता है।
- सही लोकेशन ओनर मैनुअल में दी होती है।
DEF भरने की प्रक्रिया आसान है।
- मैनुअल में दी गई क्षमता देखें।
- उतना DEF पैक खरीदें और निर्धारित रिज़र्वॉयर में डालें।
- यदि आपको स्वयं भरने में संकोच हो, तो सर्विस सेंटर पर यह काम आसानी से हो जाएगा।
सर्विस के दौरान डीलरशिप खुद ही DEF टॉप-अप कर देती है, इसलिए आपको बार-बार चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। बस गाड़ी समय पर सर्विस के लिए भेजें।
भारत में DEF कहाँ से खरीदें?
भारत में DEF खरीदने के कई विकल्प मौजूद हैं।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स: Amazon और Indiamart पर Octonol, Mak Lubricants और Tata जैसे ब्रांड्स का DEF उपलब्ध है।
- फ्यूल पंप्स: HPCL जैसे पेट्रोल पंप अपने ब्रांडेड DEF बेचते हैं।
कीमत ब्रांड के अनुसार अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, Octonol 10 लीटर (दो पैक) DEF ₹1,720 में बेचता है, यानी लगभग ₹170 प्रति लीटर। यह कीमत ईंधन की तुलना में अधिक लग सकती है, लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि DEF की खपत ईंधन की तुलना में बहुत धीमी होती है।
DEF को कैसे स्टोर और हैंडल करें?
DEF (डीज़ल एग्जॉस्ट फ्लूइड) की कीमत और समय-समय पर टॉप-अप की ज़रूरत को देखते हुए कई वाहन मालिक इसे बड़ी मात्रा में स्टॉक करना चाहते हैं ताकि बार-बार पेट्रोल पंप तक जाने से बचा जा सके। यह विचार सही है, लेकिन इसे स्टोर करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है।
सबसे पहले, DEF की एक शेल्फ लाइफ होती है। समय के साथ इसमें मौजूद यूरिया डिग्रेड होकर कम प्रभावी हो जाती है। DEF का सबसे बड़ा दुश्मन है गर्मी—जितना ज्यादा इसे गर्म जगह पर रखा जाएगा, उतनी जल्दी यह खराब होगी। इसे कभी भी ऐसी जगह स्टोर न करें जहां तापमान 22 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाता हो। आउटडोर स्टोरेज भी खतरनाक है, क्योंकि हाई हीट और UV किरणें इसे नुकसान पहुंचाती हैं।
ठंडी जगहों पर इसे आसानी से स्टोर किया जा सकता है। DEF -11 डिग्री सेल्सियस पर जम जाती है, लेकिन इसे बाद में पिघलाकर (थॉ करके) सुरक्षित रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। ध्यान रहे कि DEF जमने पर लगभग 7% तक फैलती है, इसलिए यदि आप इसे बहुत ठंडे इलाके में स्टोर कर रहे हैं तो उचित कंटेनर चुनें।
DEF स्टोर करने के लिए सही कंटेनर
- टाइटेनियम
- स्टेनलेस स्टील
- रबर
- प्लास्टिक
कॉपर, ब्रास या निकल के कंटेनर में DEF को कभी न रखें, क्योंकि इनमें करॉसिव असर होता है और DEF तुरंत खराब हो जाएगा। एक बार कंटैमिनेट हो जाने पर इसे शुद्ध नहीं किया जा सकता।
DEF से जुड़े आम मिथक
नई तकनीक के साथ अक्सर कई तरह की गलतफहमियाँ जुड़ जाती हैं। DEF भी इसका अपवाद नहीं है।
- DEF इंजन को नुकसान पहुंचाता है: यह पूरी तरह गलत है। DEF इंजन की परफॉर्मेंस बढ़ाता है और SCR सिस्टम में उत्सर्जन कम करता है।
- ज्यादा DEF डालने से परफॉर्मेंस बढ़ेगी: सही मात्रा डालना बेहद ज़रूरी है। ओवरडोज़ करने से SCR सिस्टम खराब हो सकता है और गाड़ी खराब भी पड़ सकती है।
- DEF इंसानों के लिए हानिकारक है: DEF मुख्य रूप से यूरिया और डिआयोनाइज्ड पानी से बना है। यह नॉन-टॉक्सिक है और इंसानों के लिए सुरक्षित है।
- DEF की क्वालिटी मायने नहीं रखती: खराब क्वालिटी का DEF आपके SCR सिस्टम की कार्यक्षमता घटा सकता है और उत्सर्जन बढ़ा सकता है। हमेशा वाहन निर्माता द्वारा सुझाए गए DEF का ही इस्तेमाल करें।
अगर DEF खत्म हो जाए तो क्या होगा?
वाहन निर्माता यह सुनिश्चित करते हैं कि DEF खत्म होने पर गाड़ी बिना फ्लूइड के न चल सके।
- कुछ गाड़ियों में इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर में DEF गेज होता है, जिससे लेवल हमेशा नजर में रहता है।
- कुछ गाड़ियों में सिर्फ वार्निंग लाइट होती है, जो रीफिल का समय आने पर जल उठती है।
अगर आपकी गाड़ी में DEF पूरी तरह खत्म हो जाए, तो आमतौर पर इंजन की पावर कट हो जाएगी और स्पीड लिमिटेड हो जाएगी। इसका मतलब है कि आपको धीरे-धीरे गाड़ी नज़दीकी पंप या सर्विस सेंटर तक ले जाना पड़ेगा।
कुछ निर्माताओं ने इसे और सख्त बनाया है। ऐसी गाड़ियों में अगर DEF खत्म हो जाए तो कार तब तक स्टार्ट ही नहीं होगी जब तक टॉप-अप न कर दिया जाए। आपकी गाड़ी किस कैटेगरी में आती है, यह जानने के लिए कार का ओनर मैनुअल देखना सबसे बेहतर है।
क्या DEF ठंडे मौसम में जम सकता है?
DEF तापमान के प्रति संवेदनशील होता है। जहां इसे 22 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म जगह पर स्टोर करना नुकसानदायक है, वहीं ठंडे मौसम में इसका असर उतना खराब नहीं पड़ता। DEF -11 डिग्री सेल्सियस पर जम जाता है, लेकिन इसे बाद में सुरक्षित रूप से पिघलाकर (thaw) बिना किसी मिलावट या गुणवत्ता खोए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, जमने पर DEF लगभग 7% तक फैल जाता है। इसलिए यदि आप इसे बहुत ठंडी जगह स्टोर कर रहे हैं तो ऐसा कंटेनर चुनें जो फैलाव को सहन कर सके।
DEF उत्पादन और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ
DEF के उत्पादन का पर्यावरण पर बेहद कम प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसके कच्चे माल और निर्माण प्रक्रियाएँ कड़ी निगरानी में रहती हैं। इसमें इस्तेमाल होने वाला यूरिया प्राकृतिक गैस या कोयले से तैयार किया जाता है और इसे उच्च शुद्धता मानकों पर परखा जाता है। मिनरल और आयन संदूषण से बचाने के लिए इसमें डिआयोनाइज्ड पानी का उपयोग होता है।
हालांकि, बड़ी मात्रा में DEF को नष्ट करना इतना आसान नहीं है। इसे जमीन में डालना मिट्टी और पानी को प्रदूषित कर सकता है, इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन अगर टॉप-अप करते समय थोड़ी मात्रा गिर जाए, तो चिंता की बात नहीं। इसे किसी कपड़े से पोंछा जा सकता है। छोटी मात्रा में खराब हुआ DEF ड्रेन में डाला जा सकता है, लेकिन उसके बाद पर्याप्त मात्रा में साफ पानी डालना ज़रूरी है ताकि संदूषण पूरी तरह साफ हो जाए।
निष्कर्ष
लंबे समय तक डीज़ल वाहनों की पहचान "डर्टी फ्यूल" पर चलने वाली गाड़ियों के रूप में रही। लेकिन DEF और SCR तकनीक का आना एक ज़रूरी बदलाव है, जो हमें शून्य-उत्सर्जन वाले भविष्य की ओर ले जा सकता है।
भले ही इन तकनीकों ने कारों को महंगा बना दिया है और सस्ती डीज़ल कारें लगभग गायब हो गई हैं, लेकिन DEF जैसी टेक्नोलॉजी बेहद आवश्यक है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि निकट भविष्य में भारत और दुनिया डीज़ल इंजनों पर निर्भर रहेंगे—लोगों और माल को ढोने के लिए डीज़ल की एफिशिएंसी और भरोसेमंद परफॉर्मेंस की ज़रूरत बनी रहेगी। जब तक लंबी अवधि का कोई बेहतर विकल्प नहीं मिलता, डीज़ल गाड़ियाँ हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी।