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एथेनॉल ब्लेंडिंग का ग्लोबल इतिहास: एक नजर

14 Aug 2025
Key highlights
  • 1
    दुनिया के कई देश पहले ही एथेनॉल ब्लेंडिंग को अपना चुके हैं
  • 2
    ब्राज़ील से लेकर अमेरिका तक, एथेनॉल ब्लेंडिंग का लंबा इतिहास रहा है
  • 3
    एथेनॉल उत्पादन और एक्सपोर्ट में अमेरिका सबसे आगे है
आउटलाइन

भारत ने अपने 20% एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (E20) लक्ष्य को तय समय से पहले ही हासिल कर लिया है। लेकिन यह पहला देश नहीं है जिसने फ्लेक्स फ्यूल (Ethanol blended fuel) की दिशा में कदम बढ़ाया हो। दुनिया के कई देश पहले ही एथेनॉल ब्लेंडिंग को अपनाकर अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को ज़्यादा टिकाऊ और नवीकरणीय (renewable) तरीके से पूरा कर रहे हैं। ब्राज़ील से लेकर अमेरिका तक, एथेनॉल मिक्सिंग का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसने इसे वैश्विक स्तर पर एक भरोसेमंद और पर्यावरण के अनुकूल ईंधन विकल्प बना दिया है। अगर आप सोच रहे हैं कि आखिर कैसे एथेनॉल पेट्रोल ने पूरी दुनिया में अपनी जगह बनाई, तो आइए जानते हैं इसके ऐतिहासिक सफर के बारे में।

 

The initial phase of ethanol blending

 

एथेनॉल ब्लेंडिंग की शुरुआत

 

ब्राज़ील की कहानी – ‘The Brazilian Saga’

 

जब बात एथेनॉल उत्पादन और इस्तेमाल की आती है, तो ब्राज़ील का नाम सबसे पहले लिया जाता है। दुनिया के सबसे विकसित एथेनॉल प्रोग्राम में से एक ब्राज़ील का है, जिसकी शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी।

 

1973 ऑयल क्राइसिस के बाद शुरुआत

 

1973 के वैश्विक तेल संकट के बाद, ब्राज़ील ने वैकल्पिक ईंधन की तलाश शुरू की और तब उन्होंने एथेनॉल को एक संभावित समाधान के रूप में देखा। इसी के तहत 1975 में ब्राज़ील सरकार ने "Proálcool (Programa Nacional do Álcool)" नामक कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य था शुगरकेन से एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाना और पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता को कम करना।

 

शुरुआती वर्षों में, पेट्रोल में 10% से 25% तक एथेनॉल मिलाने को अनिवार्य किया गया। लेकिन 1980 के दशक के अंत तक ब्राज़ील इससे एक कदम और आगे बढ़ा और उन्होंने एथेनॉल-ही-चलने वाली गाड़ियों का निर्माण शुरू कर दिया। सरकारी सब्सिडी की मदद से इन गाड़ियों को लोगों ने काफी पसंद किया। हालांकि, बाद में तेल की कीमतों में गिरावट और एथेनॉल की कमी के चलते इन वाहनों की लोकप्रियता कुछ समय के लिए कम हो गई।

 

एक वैश्विक मानक की स्थापना

 

2003 में ब्राज़ील ने फिर से एथेनॉल प्रोग्राम को मज़बूत किया और बाजार में ‘फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स’ (FFVs) लाए, जो किसी भी अनुपात में पेट्रोल और एथेनॉल के मिश्रण पर चल सकते थे। टेक्नोलॉजी में सुधार और एथेनॉल उत्पादन की बढ़ती कुशलता ने निवेशकों को आकर्षित किया और जनता का भरोसा भी बढ़ाया। 2008 तक, ब्राज़ील में बिकने वाली नई गाड़ियों में से 80% से अधिक FFV (Flex-Fuel Vehicle) थीं।

 

आज भी ब्राज़ील सरकार 18% से 27.5% तक (E18-E27.5) एथेनॉल मिलाने की नीति अपनाती है, जो शुगरकेन की मौसमी उपलब्धता पर निर्भर करती है। इससे देश में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन काफी घटा है और साथ ही शुगरकेन किसानों को बड़ा समर्थन भी मिला है।

 

दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक

 

ब्राज़ील अब अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक और निर्यातक है। उसकी एथेनॉल नीति को आज वैश्विक स्तर पर एक आदर्श मॉडल माना जाता है और यह दुनियाभर में टिकाऊ बायोफ्यूल उत्पादन की दिशा में एक अहम योगदान देता है।

 

अमेरिकी कहानी: एथेनॉल ब्लेंडिंग का इतिहास

 

जैसे ब्राज़ील ने एथेनॉल फ्यूल को अपनाया, वैसे ही अमेरिका भी इस क्षेत्र में एक बड़ा नाम बन चुका है। 20वीं सदी की शुरुआत से ही अमेरिका में एथेनॉल के इस्तेमाल की नींव रखी जा चुकी थी, लेकिन 1970 के दशक में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी।

 

मक्का आधारित एथेनॉल और शुरुआती दौर

 

अमेरिका में एथेनॉल का शुरुआती उत्पादन मुख्य रूप से मक्का (corn) से किया जाता था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसका उत्पादन काफी घट गया था। लेकिन 1970 के दशक में तेल संकट (Oil Crisis) के बाद अमेरिका ने पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करने के लिए एथेनॉल को घरेलू और नवीकरणीय विकल्प के रूप में बढ़ावा देना शुरू किया।

 

1978 में लागू हुई Energy Policy Act ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया। इस कानून के तहत एथेनॉल मिलाए गए फ्यूल्स पर टैक्स में छूट दी गई, जिससे इसका उत्पादन और उपयोग तेजी से बढ़ा। 1980 और 1990 के दशक में एथेनॉल की मांग और भी बढ़ गई क्योंकि इसे पेट्रोल में मिलाकर ऑक्टेन बढ़ाने के लिए लेड (lead) के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा।

 

टर्निंग पॉइंट: 2005 का Renewable Fuel Standard

 

2005 में अमेरिका की ऊर्जा नीति (Energy Policy Act) के तहत “Renewable Fuel Standard (RFS)” शुरू किया गया, जो अमेरिका की एथेनॉल नीति में सबसे बड़ा बदलाव माना जाता है।

 

इस मानक (RFS) के तहत हर साल पेट्रोल में मिलाए जाने वाले रिन्युएबल फ्यूल की मात्रा को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया, जिसमें मुख्य रूप से मक्का से तैयार किया गया एथेनॉल शामिल था। 2007 में Energy Independence and Security Act ने इसमें और भी सुधार करते हुए अधिक ऊंचे लक्ष्य तय किए और “advanced biofuels” की अवधारणा को भी शामिल किया गया।

 

आज अमेरिका में एथेनॉल का इस्तेमाल

 

  • अमेरिका में E10 (10% एथेनॉल) अभी भी सबसे आम फ्यूल मिक्स है और ज्यादातर गाड़ियाँ इसी पर चलती हैं।
  • E15 और E85 जैसे उच्च एथेनॉल मिश्रण भी 2010 के बाद पेश किए गए, लेकिन इनके इस्तेमाल में कुछ सीमाएं रहीं जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर और वाहन संगतता।
     

अमेरिका: दुनिया का सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक

 

आज अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक और निर्यातक है। वहां की एथेनॉल नीति न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में मदद करती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास, ऊर्जा स्वतंत्रता और पेट्रोल पर निर्भरता कम करने जैसे लक्ष्यों को भी आगे बढ़ाती है।

 

भारत की एथेनॉल यात्रा: अब तक की प्रगति और आगे का रास्ता

 

ब्राज़ील और अमेरिका जैसे देशों ने जहां एथेनॉल ब्लेंडिंग की नींव पहले ही रख दी थी, वहीं भारत ने भी इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। भारत में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) प्रोग्राम की शुरुआत 2003 में की गई थी। इसके बाद से भारत ने इस कार्यक्रम को निरंतर आगे बढ़ाया है।

 

अब तक की प्रमुख उपलब्धियां

 

  • 2021-22 में भारत ने 10% एथेनॉल ब्लेंड लक्ष्य हासिल किया।
  • 2022-23 में यह बढ़कर 12.06% हुआ। 
  • 2023-24 में यह आंकड़ा 14.06% पर पहुंच गया। 
  • और जुलाई 2025 तक भारत ने 20% एथेनॉल मिश्रण (E20) का लक्ष्य भी हासिल कर लिया — वो भी तय समय से 5 साल पहले
     

क्या मिला इस उपलब्धि से?

 

एथेनॉल के प्रयोग से 2014-15 से अब तक करीब ₹1.40 लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हो चुकी है क्योंकि पेट्रोल के आयात की ज़रूरत कम हुई है।

 

निष्कर्ष 

 

एथेनॉल ब्लेंडिंग की यह कहानी हमें बताती है कि अगर सही योजना और तकनीक हो, तो हम पेट्रोल पर निर्भरता कम कर सकते हैं और पर्यावरण के लिए भी अच्छा कर सकते हैं। ब्राज़ील और अमेरिका जैसे देशों ने एथेनॉल फ्यूल को बहुत पहले अपनाकर मिसाल कायम की है। भारत ने भी तेजी से प्रगति करते हुए E20 लक्ष्य समय से पहले हासिल कर लिया है, जो बहुत बड़ी उपलब्धि है।

 

अब ज़रूरी है कि भारत इस गति को बनाए रखे और 2030 तक 30% एथेनॉल मिलाने का जो अगला लक्ष्य है, उसे भी समय पर पूरा करे। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा, किसानों की आमदनी और पर्यावरण – तीनों को फायदा होगा। और अगर आप भारत में एथेनॉल के इतिहास के बारे में रुचि रखते हैं तो हमारा आर्टिकल जानिए भारत में एथेनॉल ब्लेंडिंग की पूरी कहानी जरूर पढ़िए।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सभी को बड़ा करें
Q1. एथेनॉल ब्लेंडिंग क्या है और यह क्यों ज़रूरी है?
Q2. सबसे पहले एथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम किस देश ने शुरू किया?
Q3. अमेरिका ने एथेनॉल क्षेत्र में क्या योगदान दिया है?
Q4. भारत ने एथेनॉल ब्लेंडिंग में क्या-क्या मील के पत्थर पार किए हैं?
Q5. एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के मुख्य फायदे क्या हैं?
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