

क्या E20 पेट्रोल आपकी कार के लिए सही है ? जानिए भारत में एथेनॉल ब्लेंडिंग की पूरी कहानी
- 1एथेनॉल ब्लेंडिंग वह प्रक्रिया है जिसमें पेट्रोल में एथेनॉल मिलाया जाता है
- 2एथेनॉल ब्लेंडिंग से पेट्रोलियम आयात में भारी कमी आई है
- 3भारत ने तय समय से 5 साल पहले ही 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य हासिल कर लिया है
जैसे-जैसे भारत में सरकार की नीतियाँ और उत्सर्जन मानक सख्त होते जा रहे हैं, डीज़ल इंजन धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। इस बदलाव के साथ पेट्रोल पर देश की निर्भरता काफी बढ़ गई है। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार तेजी से अपने एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है, और अब देश के अधिकतर पेट्रोल पंपों पर E20 पेट्रोल यानी 20% एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल मिलने लगा है। भले ही यह मिश्रण पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर विकल्प है, लेकिन इसके इस्तेमाल को लेकर अब भी कई सवाल हैं — खासकर पुरानी गाड़ियों और सेकंड हैंड कारों पर इसके असर को लेकर। इस लेख में हम एथेनॉल ब्लेंडिंग से जुड़ी सभी ज़रूरी बातें आसान भाषा में समझाएंगे।
एथेनॉल ब्लेंडिंग क्या है और इसकी ज़रूरत क्यों है?

एथेनॉल ब्लेंडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पेट्रोल में एथेनॉल (एक जैविक ईंधन) मिलाया जाता है। इसका मकसद पेट्रोल को अधिक स्वच्छ और टिकाऊ बनाना है। भारत में एथेनॉल मुख्य रूप से गन्ने की शीरा, चावल, मक्का जैसे कृषि स्रोतों से बनता है। इसके कारण भारत की विदेशी तेल पर निर्भरता घटती है और साथ ही किसानों को भी आर्थिक फायदा होता है।
एथेनॉल मिश्रण से पेट्रोल का ऑक्सीजन कंटेंट बढ़ता है, जिससे ईंधन ज्यादा साफ जलता है और प्रदूषण भी कम होता है। यही कारण है कि सरकार इसे ऊर्जा सुरक्षा और टिकाऊ भविष्य की दिशा में अहम कदम मानती है।
भारत में एथेनॉल ब्लेंडिंग का सफर
भारत ने 2003 में एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल प्रोग्राम की शुरुआत की थी। तब से अब तक देश ने इसमें काफी प्रगति की है। 2021-22 में 10% का लक्ष्य पूरा हुआ, और उसके बाद:
- 2022-23 में: 12.06%
- 2023-24 में: 14.06%
2024-25 (28 फरवरी तक): 17.98%
सरकार ने पहले E20 का लक्ष्य 2030 तक के लिए रखा था, लेकिन अगस्त 2025 में ही भारत ने इसे हासिल कर लिया और अब देशभर के ज़्यादातर फ्यूल स्टेशनों पर E20 पेट्रोल उपलब्ध है।
सेकंड हैंड कारों पर E20 पेट्रोल का असर
हालाँकि E20 पेट्रोल पर्यावरण के लिए अच्छा विकल्प है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि आपकी गाड़ी का इंजन इस फ्यूल के साथ अनुकूल हो। आइए इसे दो श्रेणियों में समझते हैं:
अप्रैल 2023 के बाद बनी गाड़ियाँ
अगर आप ऐसी सेकंड हैंड कार खरीदने की सोच रहे हैं जो अप्रैल 2023 के बाद बनी है, तो E20 के अनुकूलता को लेकर आपको बिल्कुल भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। अप्रैल 2023 से लागू BS6 फेज 2 नॉर्म्स के तहत सभी कार कंपनियों को अपने इंजन के ECU को E20 के अनुरूप ट्यून करना जरूरी था। यानी इन गाड़ियों में E20 इस्तेमाल करने से न तो माइलेज पर खास फर्क पड़ेगा, न ही इंजन को नुकसान होगा।
2012 से 2023 के बीच बनी गाड़ियाँ
इस अवधि की अधिकतर गाड़ियाँ पहले से ही E10 (10% एथेनॉल) के अनुकूल होती हैं। इनमें E20 फ्यूल डालने से थोड़ी बहुत असर जरूर हो सकता है:
- 2% से 4% तक का माइलेज ड्रॉप संभव है
- इसे रेगुलर इंजन ट्यूनिंग और मेंटेनेंस से नियंत्रित किया जा सकता है
साथ ही हर 20,000-30,000 किमी पर रबर पार्ट्स और गास्केट बदलने से दीर्घकालिक इंजन प्रदर्शन बेहतर बना रहेगा
मेरी कार E20 के अनुकूल है या नहीं, कैसे पता करें?
E20 फ्यूल इस्तेमाल करने से पहले ये जानना बेहद जरूरी है कि आपकी कार कौन-से फ्यूल ब्लेंड को सपोर्ट करती है। इसके लिए आप:
- गाड़ी का ओनर मैनुअल चेक करें
- फ्यूल डोर या कैप पर जानकारी देखें
सीधे कार निर्माता की कस्टमर केयर से संपर्क करें
E20 पेट्रोल को लेकर प्रचलित मिथक और उनकी हकीकत
मिथक | सच्चाई |
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एथेनॉल का कोई फायदा नहीं | CO₂ उत्सर्जन कम करता है, ईंधन आयात घटाता है, किसानों की मदद करता है |
E20 पुरानी कारों को नुकसान पहुँचाता है | सरकारी टेस्ट (ARAI, IOCL) में 1 लाख किमी तक कोई परफॉर्मेंस लॉस नहीं पाया गया |
माइलेज बहुत कम हो जाता है | केवल 1-2% (E10 इंजनों में), 3-6% बाकी में — ट्यूनिंग से संभाला जा सकता है |
एथेनॉल फ्यूल सिस्टम में जंग लाता है | आधुनिक फ्यूल में corrosion inhibitors होते हैं, पुरानी कारों में खतरा बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है |
उपभोक्ताओं को मिलावट वाला पेट्रोल दिया जा रहा है | गलतफहमी है — E20 एक रेगुलेटेड, प्रमाणित फ्यूल ब्लेंड है |
एथेनॉल से खाद्यान्न की कमी होती है | अब non-food biomass से 2nd-gen एथेनॉल बनाया जा रहा है |
एथेनॉल से इंजन जल्दी घिसता है | मॉडर्न ब्लेंड में लुब्रिकेंट्स शामिल होते हैं, असली कारण उम्रजन्य घिसाव है |
E20 सरकार का टैक्स बढ़ाने का बहाना है | ऐसा कोई प्रमाण नहीं, कीमतें नीतिगत और बाज़ार आधारित हैं |
एथेनॉल ब्लेंडिंग: 100% बायो-फ्यूल की तरफ बढ़ते कदम
भारत ने 2014-15 से अब तक एथेनॉल ब्लेंडिंग के ज़रिए ₹1.40 लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा बचाई है।
अब सरकार का अगला लक्ष्य है 2030 तक 30% एथेनॉल ब्लेंड को हासिल करना।
भारत न केवल घरेलू ईंधन सुरक्षा की दिशा में बढ़ रहा है, बल्कि यह भी कोशिश कर रहा है कि दुनिया में फ्लेक्स फ्यूल क्रांति का नेतृत्व करे।