

कार का माइलेज खुद से कैसे चेक करें – सही तरीका जानिए यहां
- 1गाड़ी की एवरेज चेक करना आदत बनाएं — छोटी-छोटी बातें माइलेज बिगाड़ सकती हैं
- 2सही माइलेज निकालने के लिए सभी फैक्टर समझना ज़रूरी है
- 3असली ड्राइविंग में आपको ARAI के मुकाबले कम माइलेज मिल सकता है
किसी भी कार के परफॉर्मेंस को आंकने में कई कारक अहम भूमिका निभाते हैं। अक्सर चर्चाओं में कार की पावर और टॉर्क फिगर्स, कार का वज़न या फिर उसकी एयरोडायनामिक डिज़ाइन का ज़िक्र होता है। लेकिन शायद कार के बारे में सोचते समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात यह होती है कि वह ईंधन को कितनी कुशलता से इस्तेमाल करती है।
कार का ईंधन खपत समझना बेहद अहम है, क्योंकि इससे आपको न सिर्फ़ यह अंदाज़ा मिलेगा कि एक फुल टैंक ईंधन पर कार कितने किलोमीटर चलेगी (या अगर इलेक्ट्रिक वाहन है तो बैटरी पूरी तरह चार्ज होने पर कितनी दूरी तय होगी), बल्कि यह भी पता चलेगा कि आपके मासिक और वार्षिक बजट पर इसका क्या असर होगा। माइलेज निकालना जानना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आपकी कार प्रति लीटर ईंधन कितने किलोमीटर चलेगी और महीने में आपकी गाड़ी कितनी दूरी तय करेगी। इसके बाद ईंधन पर खर्च होने वाला पैसा तय करना आसान हो जाता है।
कार बेचने के समय भी माइलेज अहम भूमिका निभाता है। यह गारंटी नहीं है, लेकिन अगर आपकी कार ईंधन खपत में बेहतर है, तो आपको उसका रीसेल वैल्यू भी बेहतर मिल सकता है।
लगातार बढ़ती ईंधन कीमतों को देखते हुए यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हमारा देश फ्यूल-एफ़िशिएंट वाहनों पर काफ़ी हद तक निर्भर है। ऐसे में सवाल उठता है कि कार का माइलेज सही तरीके से कैसे निकाला जाए? क्या किया जा सकता है जिससे माइलेज बेहतर हो? और क्या ड्राइविंग तकनीक का असर माइलेज पर पड़ता है? हमारी इस गाइड में हम इन सभी सवालों के जवाब देंगे।
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कार का माइलेज क्या होता है?

कार माइलेज किसी भी गाड़ी की ईंधन दक्षता (Fuel Efficiency) मापने का तरीका है। आसान शब्दों में कहें, इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) वाली कारों में यह बताता है कि एक लीटर ईंधन पर आपकी कार कितने किलोमीटर चलेगी। वहीं इलेक्ट्रिक वाहनों में इसकी दक्षता यह जानकर मापी जाती है कि बैटरी पूरी तरह डिस्चार्ज होने से पहले वाहन कितनी दूरी तय कर सकता है।
कार की दक्षता पर असर डालने वाले कारक बहुत ज़्यादा हैं, लेकिन broadly यह निर्भर करता है:
- इंजन का आकार कितना है
- कार पेट्रोल पर चल रही है या डीज़ल पर
- कार का कुल वज़न कितना है
- और इसमें कौन-कौन सी तकनीकें या पार्ट्स लगे हैं (जैसे सिलेंडर डी-एक्टिवेशन टेक) जो दक्षता को बेहतर बना सकते हैं या घटा सकते हैं
माइलेज मापने के आम यूनिट्स
- किलोमीटर प्रति लीटर (kmpl):
भारत में सबसे ज़्यादा यही यूनिट इस्तेमाल होती है। यह बताती है कि एक लीटर ईंधन में कार कितने किलोमीटर चलेगी।
- लीटर प्रति 100 किलोमीटर (l/100 km):
भारत में कम प्रचलित है लेकिन विदेशों में काफ़ी इस्तेमाल होती है। यही वजह है कि कुछ कारों में भारत में भी l/100 km में माइलेज दिखाने का विकल्प दिया जाता है।
- माइल्स प्रति गैलन (mpg):
यह यूनिट मुख्य रूप से अमेरिका और कुछ अन्य देशों में प्रयोग होती है। वहाँ मेट्रिक सिस्टम की जगह इम्पीरियल सिस्टम इस्तेमाल होता है। यह भी वही बात दर्शाता है – बस इसमें यह बताया जाता है कि एक गैलन ईंधन में कार कितने माइल्स चल सकती है।
ARAI रेटेड फिगर्स बनाम असली माइलेज
यहाँ एक अहम बात जानने लायक है – भारत में बिकने वाली लगभग हर कार के साथ ARAI (Automotive Research Association of India) द्वारा तय किया गया फ्यूल एफिशिएंसी फिगर दिया जाता है। ARAI एक सरकारी निकाय है जो ऑटोमोटिव रिसर्च, डेवलपमेंट और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से जुड़े प्रोडक्ट्स व उपकरणों का मूल्यांकन करता है।
उदाहरण के लिए, अगर ARAI किसी कार का माइलेज 15 kmpl बताता है, तो असली दुनिया (real-world) में कार मालिकों को मिलने वाला माइलेज अक्सर उससे काफ़ी कम होता है। इस अंतर के पीछे कई कारण हैं:
- ARAI टेस्टिंग मेथड: यह टेस्ट एक चेसिस डायनामोमीटर पर किया जाता है जो Indian Driving Cycle (IDC) को सिम्युलेट करने की कोशिश करता है। टेस्ट के दौरान कार पर उन्हीं ताक़तों को लागू किया जाता है जो असली कंडीशन में होती हैं (जैसे inertia)। लेकिन यह सिम्युलेशन असली ड्राइविंग कंडीशंस से पूरी तरह मेल नहीं खाता। यही वजह है कि डायनामोमीटर पर निकला माइलेज और असली दुनिया का माइलेज अलग होता है।
- टेस्ट की अवधि और परिस्थितियाँ: ARAI टेस्ट की अवधि सिर्फ़ 19 मिनट होती है और यह केवल 10 किलोमीटर की दूरी सिम्युलेट करता है। इसमें शहर और हाईवे दोनों तरह की परिस्थितियाँ बनाई जाती हैं, औसत गति लगभग 31 kmph रहती है और स्पीड 90 kmph से अधिक नहीं होती। यह असली दुनिया की ड्राइविंग परिस्थितियों को सही तरीके से दर्शा नहीं पाती, और यही दूसरा कारण है कि ARAI फिगर्स और रियल-वर्ल्ड फिगर्स में अंतर आता है।
इसके बावजूद, कार निर्माता कंपनियाँ ARAI फिगर्स का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इससे सभी कारों के लिए एक समान मानक मिलता है, जिससे अलग-अलग कारों की तुलना करना आसान हो जाता है।
अपनी कार का माइलेज कैसे निकालें
कार का असली माइलेज जानने का सबसे भरोसेमंद तरीका बहुत आसान है और इसे हर कोई कर सकता है।

स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस
- फ्यूल टैंक फुल करवाएँ – अपनी कार के टैंक को पूरी तरह भरवाएँ। सुनिश्चित करें कि फ्यूल गेज ‘F’ या ‘Full’ दिखा रहा हो।
- ट्रिप मीटर रीसेट करें – ताकि आप आसानी से यह ट्रैक कर सकें कि इस फ्यूल साइकल में आपने कितनी दूरी तय की।
- नॉर्मल ड्राइविंग करें – जिस तरह आप रोज़ ड्राइव करते हैं, उसी तरह चलाएँ। अगर आपकी ड्राइविंग में शहर का ट्रैफ़िक, हाईवे रन और छोटी-छोटी ग्रोसरी ट्रिप्स शामिल हैं, तो सभी को शामिल करें ताकि माइलेज का हिसाब वास्तविक हो।
- फिर से फ्यूल भरवाएँ – जब गाड़ी का फ्यूल गेज लगभग खाली हो जाए, तो कार में दोबारा फ्यूल डलवाएँ और इस बार ध्यान से नोट करें कि कितने लीटर फ्यूल भरा गया।
- माइलेज कैलकुलेट करें – अब कुल दूरी (ट्रिप मीटर से) को कुल फ्यूल खपत (इस बार भरे गए लीटर) से विभाजित करें।
उदाहरण
अगर आपने 450 किलोमीटर ड्राइव किया और इस दौरान 30 लीटर फ्यूल खर्च हुआ, तो माइलेज = 450 ÷ 30 = 15 kmpl।
माइलेज निकालने का फ़ॉर्मूला
कुल चली हुई दूरी (किमी) ÷ खर्च हुआ ईंधन (लीटर) = माइलेज (kmpl)

सटीक माइलेज निकालने के टिप्स
जब आप कार की फ्यूल एफिशिएंसी जांच रहे हों, तो कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है:
- ड्राइविंग कंडीशन्स को स्थिर रखें – सही नतीजे पाने के लिए भारी ट्रैफ़िक या बेहद खराब मौसम से बचें।
- फ्यूल टैंक पूरी तरह भरवाएँ – ताकि माप सटीक हो।
- कार की रेगुलर सर्विसिंग करवाएँ – यह न सिर्फ़ टेस्टिंग के समय बल्कि रोज़मर्रा के इस्तेमाल में भी ईंधन खपत को सही बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।
- टायर प्रेशर सही रखें – हमेशा मैन्युफैक्चरर द्वारा सुझाए गए psi स्तर पर ही टायर प्रेशर बनाएँ।
- अचानक एक्सीलरेशन और ब्रेकिंग से बचें – झटकेदार ड्राइविंग इंजन पर अतिरिक्त दबाव डालती है और माइलेज रीडिंग को ग़लत दिखा सकती है।
माइलेज निकालना क्यों ज़रूरी है?
कार की ईंधन खपत पर नज़र रखने से कई फायदे होते हैं और इसके पीछे ठोस वजहें भी हैं:
- लंबे समय तक खपत का ट्रैक रखना – इससे अगर माइलेज अचानक घटे तो तुरंत पता चल जाएगा। यह इंजन की समस्या का संकेत हो सकता है और समय पर तकनीशियन से जांच करवाने में मदद मिलेगी।
- फ्यूल टाइप का असर जानना – अलग-अलग फ्यूल टाइप्स का कार की परफॉर्मेंस पर क्या असर होता है, इसका मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
- ड्राइविंग आदतें सुधारना – अगर इंजन में कोई समस्या नहीं है, फिर भी खपत बहुत बदल रही है, तो इसका मतलब है कि आपकी ड्राइविंग स्टाइल को ऑप्टिमाइज़ करने की ज़रूरत है।
कार के माइलेज पर असर डालने वाले कारक
कार कितनी दूरी तय करती है, उस पर कई बातें असर डालती हैं, जैसे:
- कार का वज़न – भारी कारें (जैसे SUVs) आमतौर पर कम माइलेज देती हैं।
- इंजन का आकार – बड़े इंजन ज़्यादा फ्यूल खर्च करते हैं।
- एयरोडायनामिक्स – कार का डिज़ाइन ईंधन दक्षता को प्रभावित करता है। अगर डिज़ाइन में बहुत तेज़ कट्स और एंगल्स हैं तो एयरफ़्लो बाधित होगा, ड्रैग बढ़ेगा और फ्यूल खपत भी बढ़ेगी।
- टायर की स्थिति – अंडरइन्फ्लेटेड (कम हवा वाले) टायर माइलेज को घटा देते हैं।
- ड्राइविंग कंडीशन्स – ट्रैफ़िक, मौसम और सड़क की स्थिति असर डालते हैं। भारी ट्रैफ़िक में स्टार्ट-स्टॉप ड्राइविंग से इंजन पर दबाव पड़ता है और खपत बढ़ जाती है।
- फ्यूल क्वालिटी – बेहतर गुणवत्ता वाला ईंधन माइलेज सुधार सकता है।
- कार की सर्विसिंग – समय पर सर्विस कराने से इंजन परफॉर्मेंस ऑप्टिमाइज़ होती है और ईंधन दक्षता बेहतर होती है।
ड्राइविंग आदतों का माइलेज पर असर
आपकी ड्राइविंग आदतों का ईंधन खपत पर कितना गहरा असर पड़ता है, इसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। स्मूद और प्रोग्रेसिव एक्सीलरेटर इनपुट्स माइलेज को काफी बेहतर बना सकते हैं। इसी तरह, हाईवे पर एक समान स्पीड पर क्रूज़ करना भी फ्यूल एफिशिएंसी के लिए लाभकारी है। ट्रैफ़िक को पहले से भांपना और उसके अनुसार ब्रेकिंग प्लान करना भी स्मूद एक्सीलरेटर और ब्रेक इनपुट्स देने में मदद करता है, जिससे ईंधन की बचत होती है।
जहाँ ज़रूरत न हो, वहाँ एसी का इस्तेमाल न करना भी अच्छा विचार है, क्योंकि यह इंजन पर अतिरिक्त लोड डालता है और फ्यूल खपत बढ़ा देता है। इसके अलावा, लंबे समय तक सिग्नल पर खड़े रहने पर इंजन बंद करना हमेशा एक अच्छी प्रैक्टिस है।
ड्राइविंग आदतों से माइलेज बेहतर करने के टिप्स
अपनी कार की फ्यूल खपत पर असर डालने के लिए आप कई आदतें अपनाकर उसका माइलेज बेहतर कर सकते हैं।
- स्मूद एक्सीलरेशन और ब्रेकिंग – हल्के और स्मूद इनपुट्स से ईंधन की बर्बादी कम होती है। झटकेदार ड्राइविंग से माइलेज काफी घट जाता है।
- स्थिर गति बनाए रखें – जहाँ संभव हो, एक समान स्पीड पर चलें ताकि फ्यूल एफिशिएंसी बेहतर हो।
- इंजन को आइडल न रहने दें – लंबे समय तक रुके रहने पर इंजन बंद कर दें।
- टायर प्रेशर सही रखें – अंडरइन्फ्लेटेड टायर फ्यूल खपत बढ़ाते हैं।
- सही समय पर गियर बदलें – इंजन को ज़्यादा रेव करने से बचें। समय पर गियर बदलने से माइलेज बेहतर होता है।
- एयर कंडीशनिंग सोच-समझकर इस्तेमाल करें – क्योंकि यह इंजन पर अतिरिक्त लोड डालता है।
- कार का वज़न घटाएँ – गैर-ज़रूरी सामान कार से निकालें। गाड़ी जितनी भारी होगी, उतना ज़्यादा फ्यूल लगेगा।
- ड्राइविंग कंडीशन्स का ध्यान रखें – भारी ट्रैफ़िक और अत्यधिक मौसम से बचें।
- इको ड्राइविंग मोड का इस्तेमाल करें – कई कारों में Eco या Green मोड दिया होता है, जो थ्रॉटल रिस्पॉन्स को नियंत्रित कर एफिशिएंसी बढ़ाता है।
- रेगुलर सर्विसिंग करवाएँ – समय पर कार की सर्विस करने से इंजन का परफॉर्मेंस और फ्यूल एफिशिएंसी दोनों बेहतर रहते हैं।
निष्कर्ष
यह जानना कि आपकी कार एक तय समयावधि में कितना ईंधन खर्च कर रही है, कई वजहों से अहम है। माइलेज जितना बेहतर होगा, फ्यूल पर उतना ही कम खर्च होगा और रीसेल के समय आपकी कार की वैल्यू भी उतनी ही अधिक होगी।
भारत जैसे प्राइस-सेंसिटिव देश में कार को यथासंभव एफिशिएंट रखना बेहद ज़रूरी है। हालाँकि कुछ कारक हमारे नियंत्रण में नहीं होते (जैसे कार का डिज़ाइन और कुल वज़न), लेकिन कई चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें बदलकर हम माइलेज में सुधार कर सकते हैं। तो अब आप माइलेज निकालना सीख ही चुके हैं तो अब आपको अपनी कार का माइलेज बढ़ाने के तरीके और उपायों के बारे में भी जान लेना चाहिए। अभी लिंक पर क्लिक करके हमारा आर्टिकल पढ़िए।